मैं जानता हूं मैं पागल नहीं रहते हुए भी पागल कहला सकता हूं। मैं जानता हूं, मैं ज्ञानी नहीं रहते हुए भी ज्ञानी कहला सकता हूं, मैं यह भी जानता हूं, मनुष्य के रूप में मैं भगवान अवतरित हुआ हूं, लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि मुझे भगवान नहीं एक साधारण इंसान बनकर जीना है। मैं यह भी जानता हूं साधारण इंसान को हर कोई सताता है।
मैं यह भी जानता हूं सताते हुए इंसान को किसी ने बचा लिया तो वह भगवान का रूप कहलाता है। "तो मै कौन हूं "
मैं यह भी जानता हूं मैं जो बोल रहा हूं, मैं क्या बोल रहा हूं। मैं यह भी जानता हूं इन तरह के शब्द मैं ही क्यों बोल रहा हूं।
मैं यह भी जानता हूं इंसान के अंदर सिर्फ इंसान ही नहीं बसते, उसके अंदर इंसान,भगवान और हैवान सभी बसते हैं।
मैं भगवान फिर किसे कहूं, लेकिन मैं यह भी जानता हूं। श्री कृष्ण अपने दोस्त अर्जुन को ज्ञान देते हुए कहे थे,मैं सभी में-सभी मेरे में है,,
तो मैं इतने बात क्यों बना रहा हूं, मैं यह भी जानता लोग मेरे इतने बातों को क्यों गहराई से सुन रहे हैं। क्या वह इन बातों को नहीं जानते ? तो सुन क्यों रहे हैं ? वह पागल तो नहीं-मैं पागल कैसे कह रहा हूं मैं यह भी जानता हूं ।
क्या हम सभी इन बातों को जानते हुए गलतियां करते हैं ? अगर गलतियां करते हैं तो भगवान के द्वारा दी गई सजा को हम मानते क्यों नहीं, तो भगवान कौन हैं ?
क्या हम आपसे मजाक कर रहे हैं या आप इसे मजाक समझ रहे हैं, या भगवान मजाक नहीं करते । वह हमेशा गुस्से में रहते हैं। क्या वह हम लोगों के जैसा हंसते नहीं, वह किसी से बात नहीं करते, अपने अहंकार में रहते हैं; तो उन्हें भगवान कौन कहता है!
जब मैंने कहा कि मैं ही भगवान हूं तो आप तो मुझे जो चाहे सजा भी दे सकते हो और माफी भी... क्या करना चाहिए। यह कौन नहीं जानता,
क्या आप ज्ञानी नहीं हो,अगर ज्ञानी हो तो मेरे प्रश्न के उत्तर क्यों नहीं देते ।

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