↳ एक कान ने से सुनना,दूसरे से निकाल देना ↲ ➫➫➫➫➫➫➬➬➬➬➬➬➬➬➬ |
दिल्ली में एक महाजन था । उसे साधु-संतों के सत्संग सुनने का बहुत शौक था। वह हर रोज
सत्संग में जाता और अपने लड़के को दुकान पर छोड़ जाता ।एक दिन उसके लड़के ने कहा, "पिता जी, आप हरी दर्शन करने जाते हो,आपको इससे अवश्य आनंद आता होगा। एक दिन मुझे भी सत्संग जाने की आज्ञा देना और आप दुकान पर रहना। मेरा मन भी करता है कि देखूं सत्संग कैसा होता है ।" पिता ने कहा, "क्यों नहीं, तुम भी ज़रूर जाना। तुम्हें भी इससे आनंद आएगा।"
जब लड़का सत्संग में गया तो वहां महात्मा ने वचन कहे, "सब की सेवा करनी चाहिए, कभी
देख, मैं 37 साल से सत्संग सुनता आया हुं पर मुझे एक भी याद नहीं। तूने ऐसा क्यों किया ? यह बात याद रखना कि सत्संग सुनने के बाद वही पल्ला झाड़ कर आ जाना। मैं एक कान से सुनता हूं और दूसरे से निकाल देता हुं । ऐसी बातें पल्ले नहीं बांधा करते। मेरी ओर देख। मुझे कितना समय हो गया है सत्संग में जाते, मैं हमेशा पल्ला झारकर चला आता हूं।"YouTuber Tricks इसी तरह हम भी सत्संग सुनते हैं लेकिन अमल नहीं करते।⇜ प्रेम से प्रेम,घृणा से घृणा ⇝ अमृत दान
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