↫ मालिक की मौज़ ↬
एक बार का जिक्र है कि एक भेषी साधु को गुरु नानक साहिब के साथ रहने का इत्तेफ़ाक हुआ। जो भेष को बहुत महत्व देते थे, उनको वास्तव में गुरु और नाम पर कोई विश्वास नहीं होता।1 दिन उस साधु ने कहा कि मुझे कोई महात्मा बनाए ताकि मैं उसकी संगति करूँ।छोर दो आपके बस कि बात नही है ,पुरी कहानी को पढ़ना" क्योंकि कहानी थोरी लम्बी है ।------------ 👉 जो रहना वो साफ कहना !
कुछ तो है जिसने भी अपना कीमती वक्त इस कहानी को लिखने मे दिया।गुरु नानक साहिब ने कहा कि बड़े-बड़े महात्मा है; फिर भी अगर तुझे जाना है तो तेरे रास्ते में भाई लालो बढ़ाई है, उसके पास चला जा। जब वह वहां गया तो लालो उठ खड़े हुआ। उसने चारपाई डाल दी। साधु बैठ गया। भाई लालो ने कोई बात न की ।
बल्कि अपना काम करता रहा। जब थोड़ी देर बैठकर साधु निराश होकर जाने लगा तो भाई लालो ने कहा, "2 घंटे सब्र करो । मुझे एक बहुत जरूरी काम है वह कर लु, फिर आपकी सेवा में बैठता हूं।
साधु ने मन में सोचा कि यह तो निपट संसारी है, इससे दुनिया के काम ही नहीं छूटते, यह कैसा महात्मा है ! इधर भाई लालो ने दो बांस लिए, उनको जोड़कर मुर्दा रखने की सीडी बनाई और अंतिम संस्कार का दूसरा सामान इकट्ठा किया।
साधु ने देखा और पूछा, "यह क्या कर रहे हो ?
लालो ने जवाब दिया, 'मेरा बेटा मुकवा लेने गया था, रास्ते में उसके ऊपर से गाड़ी का पहिया निकल गया और वह मर गया है।यह सिढी उसके लिए बनाई है।"
साधु के मन में भ्रम पैदा हो गया ! बोला,"भाई लालो ! अगर तुझे मालूम था तो तुझे वहां जाकर पुत्र को साथ ले आना था।"
भाई लालो ने उत्तर दिया,"जो सतगुरु की मौज़ है, वही होता है। इस पर साधु ने कहा,"ज़रूर तेरे बेटे के साथ थी तेरी दुश्मनी थी !
तू बेटे को रखना नहीं चाहता था।" यह कहकर वह नाराज़ होकर जाने लगा, तो भाई लालू ने कहा, "तू मुझे क्या कहता है। आज से 8वे दिन तू इस पेड़ से फाँसी पर लटक कर
मरेगा । अगर बच सकता है तो बच जा। मैं तो यही समझता हूं कि जो कुछ होना होता है होकर ही रहता है।"
अब साधु को चिंता हो गई कि कहीं मेरे साथ भी ऐसा न हो। सोचा कि इस पेड़ से बहुत दूर चला जाऊँ,तो इससे फाँसी लगने का सवाल ही न रहेगा । यह सोचकर वह 4 दिन तक जितना दौड़ सका, दौड़ते रहा । भूखा प्यासा था।
आखिर व्याकुल होकर गिर पड़ा और सो गया । जब उठा तो दिशा का ख्याल न रहा और वापस उसी ओर दौड़ने लगा जिस ओर से आया था। फिर 4 दिन तक लगातार भागता रहा और आखिर उसी जगह पहुंच गया। जहां से आठवें दिन भागना शुरू किया था।जब आठ दिन हो गये तो दिल में सोचता है कि अब मुझे कौन फाँसी पर लटका सकता है? मैं तो उस पेड़ से कोसों दूर हूं।
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भाई लालो झूठा है। मेरा आज का दिन ही बाकी है, यह सोच कर उसी पेड़ के नीचे सो गया। उधर वहां से कुछ दूर एक शहर में कुछ चोरों ने चोरी की और माल लूटकर वहां से निकले । जितना जेवर और अन्य सामान था उन्होंने आपस में बांट लिया, पर एक हार बाकी रह गया । ख्याल किया कि इसको तोड़कर बांट लें। फिर कहा कि यह बहुत खूबसूरत है,क्यों ना इसे साधु के गले में डाल देते दे। यह सोचकर हार उस सोए हुए साधु के गले में डालकर चले गए।
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जब दिन निकला तो सिपाहियों ने जो कि चोर की तलाश में निकले हुए थे, साधु को पकड़ लिया और हाकिम के पास ले गए। उस जमाने में सजा सख़्त होती थी। हाकिम ने बिना बयान लिए उसे फाँसी की सजा सुना दी और हुक्म दिया कि इसे उसी पेड़ से लटका कर फाँसी दे दी जाए,
क्योंकि नियम यह था कि जिसके पास चोरी का माल मिल जाए,उसको बिना बयान लिए मुज़रिम मान लिया जाए फिर जिस को फाँसी देनी होती थी उससे पूछ लेते थे कि तुझे किसी से मिलना हो तो बता ताकि मिला दे।
साधु से भी पूछा गया कि तुझे किसी से मिलना हो तो बता,,, साधु ने कहा कि एक भाई लालू बढ़ाई है,उससे मिलना है भाई लालू को बुलाया गया जब वह आया तो साधु बोला," आप ठीक कहते थे। मेरी ग़लती थी कि मैं नहीं माना। अब सामने वही पेड़ है, वही मैं हूं और फाँसी का हुक्म हो चुका है।कृपया करके जिस तरह हो सके मुझे बचा लो मैं सारी उम्र आपका उपकार नहीं भूलूंगा।" भाई लालू ने कहा कि मैं अपने सतगुरु नानक साहिब से विनती करता हूं, आशा है कि वे मेरी विनती मानकर तुझे बचा लेंगे। तू आधा घंटा सब्र कर ।इतने में खबर आएगी चोर पकड़े गए हैं। चोरों ने कहा कि अब हम मान ले कि हम ने चोरी की है; कहीं ऐसा ना हो कि बेगुनाह साधु मारा जाए । जब चोरों ने चोरी का सारा माल दे दिया तो हकीम ने उस साधु को छोड़ दिया |
साधु सीधा भाई लालू के घर पर पहुंचा और फिर गुरु नानक साहिब के पास पहुँचकर नाम- दान लिया और उनका सच्चा सेवक हो गया।क्यों नहीं हम लोग जल्दी से पैसा कमा लेते हैं,सब मालिक कि मर्ज़ी है !








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