The only one can be hidden if you speak it,then there is a hidden truth in every human being that you enjoy traveling .Which helps you increase the inner strength.
जिन रास्तों से मैने .......सफलता की बात सुनी है........उन राहो पर अक्सर ,मैने धूप करी देखी है ।
Face kitab
Monday, December 30, 2019
सिमरन=Part -2
सिमरन संस्कृत पद स्मरण का अपभ्रंश है जो स्म से बना है और जिसका अर्थ है, याद करना । इसके और भी कई अर्थ हैं जैसे, अपने इष्ट की छवि को अपने हृदय से स्थापित करके उसको याद करना,उसको अपने जीवन का अंग बना लेना और उसी में जाग उठना। इसमें योग के गुण- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि - स्वाभाविक रूप से आ जाते हैं। सिमरन या जप योग का एक आवश्यक अंग है। इसके बारे में गीता में लिखा है 'यज्ञाना जप योज्ञोस्मि 'यज्ञो मे मैं जप-हुं।अर्थात जप सबसे उत्तम यज्ञ है।
धुनात्मक नाम से जुड़ने के लिए अंतर मुर्ख होना आवश्यक है, परंतु यह जीव अनादि काल से बाहरमुखी चला आ रहा है। संत इसे सिमरन द्वारा सच्ची अंतरमुर्ख प्राप्त करने की शिक्षा देते हैं ।
हम सब इंद्रियों के द्वारा बाहर मुखी होते हैं, पर वे इंद्रियां जिनके द्वारा हमारी वृत्ति विशेष तौर पर बाहर जाती है, तीन है - जीव, नेत्र और कान। जबान के द्वारा हम लोगों के साथ बात करते हैं और अपने विचार उन तक पहुँचाते हैं। उन्हीं का सिमरन करने से हमारे मन और बुद्धि में संसार के विचार प्रवेश करते रहते हैं। आंखों के द्वारा हम संसार के पदार्थों को देखते हैं और उनके रूप हमारे अंदर बसते रहते हैं और कानो द्वारा हम संसार का जिक्र या वृत्तांत सुन-सुनकर हम उसी में मग्न हो जाते हैं। यदि इन इंद्रियों से ख्याल का बाहर जाना रुक जाए और बाहर से संस्कारों का ग्रहण होना बंद हो जाए तो हम अंत मूर्ख होकर सच के भेद के ज्ञाता हो सकते हैं। इसलिए संतों ने इंद्रियों की शक्तियों पर रोक लगाने की शिक्षा दी है। बोलने की शक्ति पर सिमरन की, देखने की शक्ति पर ध्यान की और सुनने की शक्ति पर आंतरिक शब्द मतलब ध्वनि की इन तीनों साधनों की बहुत आवश्यकता है ।
आप लोग कैसे हैं ? आप लोगों का आंसर होगा हम ठीक हैं ,हमारा चल रहा है| चल नहीं रहा है या आप चला रहे हैं तभी चल रहा है आप इसे दौराएंगे,तो दौड़ेगा भी | Do you Understand.
बाहर के नामों का सिमरन करते हुए आंतरिक नाम के साथ संबंध हो जाता है| नाम का सिमरन एक उत्तम रसायन है| यह आत्मा का भोजन है | सिमरन सदा भाव और विश्वास के साथ करना चाहिए,प्रेम और सच्चाई के साथ करना चाहिए। भाव-सहित सिमरन करने से मनुष्य को एक नशा-सा प्राप्त हो जाता है। जिसके द्वारा वह शरीर और भौतिक वातावरण को भूल जाता है और परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव करता है। उसके अंतर में आनंद शक्ति और आत्मिक शक्ति का प्रवाह आ जाता है । सिमरन की एक अवस्था को पाकर वह निहाल हो जाता है। सिमरन पूरी लगन के साथ करना चाहिए पर इसके लिए दुनिया के कामकाज को छोड़ने की आवश्यकता नहीं काम भी करते रहना है और मन को सिमरन में भी लगाए रखना है। जिस प्रकार स्त्रियां पानी भरने जाती है उनके सिर पर घरा है। ऊंची-नीची जमीनें हैं, वे आपस में बातचीत भी करती है, पर उनका ख्याल घरा में ही रहता है इसी प्रकार संसार का कामकाज करते हुए ध्यान सदा मालिक के नाम के सिमरन में रहना चाहिए। सिमरन की सही अवस्था के बारे में कबीर साहिब फरमाते हैं ॥॥।॥॥॥॥।
तन मन स्थिर स्थिर सूरत नीरज स्थिर हुए / कह कबीर इस पलक को कल्पना पाए कोई //
अर्थात एकाग्र होकर किया गया पल-भर का सिमरन भी काल के फंदे को काट देता है। यदि नाम का सिमरन संत-सतगुरु के आदेश के अनुसार नियम पूर्वक तथा सही-रीति से किया जाए तो इससे अलौकिक फल मिलते हैं। आत्मा जो शरीर के रोम-रोम में रची हुई है शरीर के नौ दीवारों को छोड़कर, सिमटकर दसवें द्वार (जो आंखों के बीच है) मे आ जाती है और शरीर बिल्कुल सुन्न हो जाता है। अंतर्मुखी हो जाने के कारण, अभ्यासी को आत्मिक मंडलों के दृश्य दिखाई देने लगते हैं। वह तारा-मंडल, चंद्र, सूर्य आदि देखता है और उसके अंदर में प्रकाश हो जाता है ।
श्वेतास्वर उपनिषद में भी इन प्रकाश का वर्णन करते हुए कहा गया है कि अभ्यासी अपने अंदर सूर्य, अग्नि, जुगनू, बिजली की चमक और चंद्र आदि के प्रकाश को देखता है।
पतंजलि के योग-सूत्रों में सिमरन के बारे में लिखा है कि सिमरन से इष्ट-देव साक्षात होते हैं। व्यास जी ने भी अपनी व्याख्या में बताया है कि देवता, ऋषि और सिद्ध सिमरन करने वाले के दर्शनों के लिए जाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि सिमरन से अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है ।
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