एक लड़का रास्ता भटक गया और जंगल जा पहुंचा। वहां चारों ओर घनी झाडियां थीं, वृक्षों के झुंड थे, ऊंचे पहाड़ थे...
एक लड़का रास्ता भटक गया और जंगल जा पहुंचा। वहां चारों ओर घनी झाडियां थीं, वृक्षों के झुंड थे, ऊंचे पहाड़ थे। इतनी गहरी खाइयां थीं कि नीचे देखते ही डर लगता था।
फिर भी, वह आगे बढ़ता गया। उसे डर तो लग रहा था लेकिन उस डर में एक अजीब-सा आकर्षण भी महसूस हो रहा था, क्योंकि वह पहली बार जंगल में आया था।
प्रकृति का अक्षत सौंदर्य उसे भा रहा था। अचानक उसे पास की झाड़ियों से आवाज सुनाई पड़ी। लगा जैसे कोई दबे पांव उसकी ओर बढ़ रहा है। वह डर गया और आवाज दी, कौन?
पहाडियों से टकराकर उसकी आवाज वापस लौटी ... कौन? युवक ने समझा, जरूर कोई है। वह और ऊंची आवाज में बोला, डरपोक कहीं का। फिर प्रतिध्वनि हुई ...डरपोक कहीं का।
उसने फिर साहस बटोरा और चिल्लाया, मैं तुझे मार डालूंगा। आवाज फिर पहाड़ से टकरा कर प्रतिध्वनित हुई ...मार डालूंगा। युवक और भी डर गया। वह लड़का हम और आप हैं और वह सुंदर अरण्य यह संसार है।
इसमें जो चीख-पुकार हम मचाते हैं, उसी की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है। हमारा डर जंगल में पैदा नहीं होता, हमारे मन में पैदा होता है। हमारे मन का भ्रम है डर। क्या ऐसी प्रतिध्वनियां हम सब के निजी जीवन में भी पैदा नहीं होतीं?
गलत और सही काम की प्रतिध्वनि अंदर से सुनाई नहीं देती? हर इंसान आत्ममंथन करता है, चाहे थोड़ी देर के लिए ही सही, लेकिन लालच और तृष्णा के कारण उसकी आंखें बंद हो जाती हैं। अच्छे और बुरे में अंतर समझते हुए भी, वह उस ओर से आंखें मूंद लेता है।
सबक
कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान की दुकान होता है। इसलिए मन को सदा अच्छे विचारों और सकारात्मक लक्ष्य में व्यस्त रखना चाहिए। साथ ही मन पर मंथन भी करते रहना चाहिए, क्योंकि कई बार आगे के रास्ते सिर्फ इसीलिए भी बंद हो जाते हैं क्योंकि हम चिंतन-मनन करना छोड़ देते हैं।
हम जैसा सोचेंगे, हमारा मन वैसी ही परिस्थितियां हमारे लिए तैयार कर देता है। अगर आप सोचेंगे कि भविष्य में हमारे जीवन की दिशा प्रगति की ओर होगी, तो हमारे मन की प्रतिक्रिया उसी के अनुसार होने लगती है। इसी प्रकार अगर कोई यह सोचता है कि वह जिंदगी से हार गया तो उसका मन शुरुआत से पहले ही हार जाता है।
फिर भी, वह आगे बढ़ता गया। उसे डर तो लग रहा था लेकिन उस डर में एक अजीब-सा आकर्षण भी महसूस हो रहा था, क्योंकि वह पहली बार जंगल में आया था।
प्रकृति का अक्षत सौंदर्य उसे भा रहा था। अचानक उसे पास की झाड़ियों से आवाज सुनाई पड़ी। लगा जैसे कोई दबे पांव उसकी ओर बढ़ रहा है। वह डर गया और आवाज दी, कौन?
पहाडियों से टकराकर उसकी आवाज वापस लौटी ... कौन? युवक ने समझा, जरूर कोई है। वह और ऊंची आवाज में बोला, डरपोक कहीं का। फिर प्रतिध्वनि हुई ...डरपोक कहीं का।
उसने फिर साहस बटोरा और चिल्लाया, मैं तुझे मार डालूंगा। आवाज फिर पहाड़ से टकरा कर प्रतिध्वनित हुई ...मार डालूंगा। युवक और भी डर गया। वह लड़का हम और आप हैं और वह सुंदर अरण्य यह संसार है।
इसमें जो चीख-पुकार हम मचाते हैं, उसी की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है। हमारा डर जंगल में पैदा नहीं होता, हमारे मन में पैदा होता है। हमारे मन का भ्रम है डर। क्या ऐसी प्रतिध्वनियां हम सब के निजी जीवन में भी पैदा नहीं होतीं?
गलत और सही काम की प्रतिध्वनि अंदर से सुनाई नहीं देती? हर इंसान आत्ममंथन करता है, चाहे थोड़ी देर के लिए ही सही, लेकिन लालच और तृष्णा के कारण उसकी आंखें बंद हो जाती हैं। अच्छे और बुरे में अंतर समझते हुए भी, वह उस ओर से आंखें मूंद लेता है।
सबक
कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान की दुकान होता है। इसलिए मन को सदा अच्छे विचारों और सकारात्मक लक्ष्य में व्यस्त रखना चाहिए। साथ ही मन पर मंथन भी करते रहना चाहिए, क्योंकि कई बार आगे के रास्ते सिर्फ इसीलिए भी बंद हो जाते हैं क्योंकि हम चिंतन-मनन करना छोड़ देते हैं।
हम जैसा सोचेंगे, हमारा मन वैसी ही परिस्थितियां हमारे लिए तैयार कर देता है। अगर आप सोचेंगे कि भविष्य में हमारे जीवन की दिशा प्रगति की ओर होगी, तो हमारे मन की प्रतिक्रिया उसी के अनुसार होने लगती है। इसी प्रकार अगर कोई यह सोचता है कि वह जिंदगी से हार गया तो उसका मन शुरुआत से पहले ही हार जाता है।
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