Face kitab

Friday, November 8, 2019

इक तो जिनदगी मिली है छोटी ,उपर से जवानी के और भी छोटे दिन!




  1. किन बातों के कारण हमने रोया था,यह ग़लती से सभी को याद रह जाता है,लेकिन किन बातों पर हमने हंसना सीखा था यह बातें अक्सर भूल जाते है ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌!
  2. अगर आप पेंसिल✐से गंदे अक्षर लिखते हो,तो पेन✏से भी गंदे ही अक्षर लिखोगे।अगर आपने कैंप्यूटर चलाया है या चला रहे हैं तो आगे जाकर सुपरकंप्यूटर भी चलायेंगे,अच्छा सोचो अच्छे बनो!!
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अगर आप पेन से लिखते हो तो मैं भी पेन से ही लिखता हू । अगर मैं मेहनत से काम करूँगा तो पैसे ज़रूर कमाऊगा । ये आम बात है लेकिन ये सभी को पता है , तो प्रोबलम कहा है।👀
       तुम कम से कम मन से तो ज़रूर सदा इस काम में लगे रहो,ड्यूटी के समय भी और खाली समय में भी- यह काम तन और मन से शांतिपूर्वक तथा लगन से किए जाने की मांग करता है l
            लुधियाना का एक स्कूल मास्टर था,उसे नाम अभ्यास का बहुत शौक था। एक दिन वह शहर को चल पड़ा । गुरु के प्यार में इतना मस्त हो गया कि 13 मील दूर एक गांव में पहुंच गया। जब देखा कि वह दूर आ गया,,,,,तो लोगों से पूछा कि यहां से लुधियाना कितनी दूर है। किसी ने कहा कि 13 मील!☹️ वह बोला अब क्या करूँ, दिल ने कहा कि कोई तांगा कर लू। लेकिन अब क्या।मुझे तांगे की जरूरत नहीं, मैं जिस तरह आया हूं उसी तरह चला जाऊँगा।✔️ 
                  जब मनुष्य को नाम की लज्जत आ जाती है,तो फिर उसे अपने शरीर की भी सुध नहीं रहती।👨
       जो सतगुरु की सेवा में लगा है,वह बड़ा भाग्यशाली है क्योंकि सतगुरु में मालिक समाया हुआ है।
       जब बड़े महाराज जी डेरे में बाबा जयमल सिंह जी के पास आए तो वहां कोई मकान नहीं था,सिर्फ एक छोटी सी कोठरी थी। जिसके आसपास बाढ़ लगी थी। पानी का कोई इंतज़ाम नहीं था। पानी दरिया से या दूसरे गांव के कुएँ से लाना पड़ता था। जिस वक्त वहां निर्माण का काम शुरू हुआ,बड़े महाराज जी ने एक कुएँ खुदया और मकान भी बनवा दिया।
 
    उस वक्त नदी में बाढ़ आने के कारण दूसरा गांव के लोग रह रहे थे।लोगों ने उनसे कहा कि आप यहां मकान बनवा रहे हो, कुएँ खुदवा रहे हो,आप क्या ना समझ है?अगर दरिया ने सब कुछ बहा दिया तो!!
       बड़े महाराज जी ने जो उस समय सेना में एक इंजीनियर के तौर पर काम कर रहे थे, उनको जवाब दिया कि अगर मकान बन जाए और सतगुरु एक बार भी आकर इस में बैठ जाए तो हम अपनी मेहनत को सफल समझेंगे,फिर चाहे दरिया ले जाए परवाह नहीं।
                    तो यह सतगुरु की सेवा है,मतलब यह है कि जो धन साधू संगत की सेवा में लग जाए व सफल है उसकी रख वाली भी सतगुरु ही करते हैं।
                             ब कोई व्यक्ति पूरे सदभावना से या उनके प्रतिनिधि के द्वारा नाम दान प्राप्त करने के लिए संपर्क कर लेता है तो चाहे नामदान पाने से पहले ही उनकी मृत्यु क्यों ना हो जाए। उस व्यक्ति की पूरी जिम्मेदारी सतगुरु ले लेता है। नाम दान के लिए अपनी इच्छा प्रकट करने के समय ही उस व्यक्ति को सतगुरु द्वारा संभाल और मार्गदर्शन मिलने लग जाता है।
        बरेे महाराज जी ने अपना लिखा वाक्य बयान  किया, तब आप मुंगेर मे सब डिविज़न अफ़सर थे, उन दिनों बाबू गज्जा सिंह जी भी आपके साथ से एक बार वहां थे। एक लीडर आया जो परमात्मा को नहीं मानता था इसलिए वहां उसको न मुसलमान रहने देते थे न हिंदू । वह बहुत दुखी हुआ । जब बाबू गज्जा को यह पता चला तो वह बड़े महाराज जी के पास गए और उस सज्जन का सारा हाल बताया। आपने कहा कि उसको बुलाओ। वहां एक असिस्टेंट मेडिकल अफ़सर थे जो सम्मोहन द्वारा इलाज करता था और वह उसी के पास इलाज करवाने के लिए आया था। जब वह लीडर बड़े महाराज जी के पास आया तो आपने उससे पूछा कि इलाज करवाने के लिए तुम्हें क्या चाहिए। वह बोला जी एक कुर्सी, एक मेज़ और एक बरामदा ।

      आपने पूछा कि कुछ और भी चाहिए तो बताओ उसने कहा कि नहीं। उसको यह चीजें दे दी गई बातचीत से पता चला कि वह काठियावाड़ का एक बहुत बड़ा पंडित था। परमार्थी ख्याल रखता था और परमात्मा की तलाश में निकला था ,लेकिन परमात्मा ना मिला और वह किसी ऐसे समाज में फँस गया जिस ने साबित कर दिया कि परमात्मा है ही नहीं।
         बड़े महाराज जी उन दिनों अक्सर दौरे पर जाते थे,उनके पीछे बाबू 
गज्जा सिंह सत्संग करते थे और वह सज्जन सत्संग में आया करता था। काफी समय व सत्संग सुनता रहा आखिर एक दिन बड़े महाराज जी से कहने लगा मुझे नाम दे दो। आपने इस बात का कोई उत्तर ना दिया बल्कि कई दिन इसी तरह खामोशी में बिता दिए। उसने एक दिन खुद ही कहा है जी आप मज़दूरों को रोज़ाना क्या मजदूरी देते हैं। आपने कहा कि चार आने उसने कहा मैं 3:00 आने ले लूंगा मुझे मज़दूरों में शामिल कर लो। इसी दौरान वह बीमार हो गया। आपने उस जैसे विद्वान और श्रेष्ठ पुरुष को मज़दूरों में तो क्या शामिल करना था,और कह दिया जब तू ठीक होगा नाम दे दूंगा। आखिर वह नाम लिए बिना वहां से सोलन चला गया। कुछ समय बाद आपको सोलन से उसकी चिट्ठी आई, लिखा था कि मुझे उम्मीद नहीं थी, मेरी चिट्ठी पहुंची है अब मैं परमात्मा को मानता हूं। मालूम नहीं कि मौत के वक्त वह मेरी संभाल करेगा कि नहीं ,

महाराज जी ने उत्तर में लिखा, वह सभी के अंदर है तेरे अंदर भी है और तेरी संभाल भी ज़रुर करेगा।

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