Face kitab

Saturday, September 7, 2019



प्रभु की इच्छा या इंसान की मर्ज़ी l

 मनुष्य अपनी विपत्तियों को निमंत्रण देता है और फिर इन दुख में अतिथियों के प्रति विरोध प्रकट करता है, क्योंकि वह भूल जाता है कि उसने कैसे, कब और कहां उन्हें निमंत्रण - पत्र लिखे तथा भेजे थे l परंतु समय नहीं भूलता ;समय उचित अवसर पर हर निमंत्रण पत्र ठीक पते पर दे देता है, और समय ही हर अतिथि को मेजबान के घर पहुँचाता है !

       एक गांव में एक अच्छा कमाई करने वाला महात्मा हुआ करते थे l जिक्र है कि उसके एक लड़की थी l
जब वह जवान हुई तो आनंद की पत्नी ने कहा कि किसी पंडित के पास जाओ और लड़की के लिए कोई अच्छा सा वर और उसकी शादी का मुहूर्त निकलवाओ।
अब आनंद कमाई वाला महात्मा था, यह काम उसके स्वभाव के अनुकूल नहीं था क्योंकि उसके विचार बिल्कुल अलग तरह के थे। वह हमेशा मालिक की मौज़ में खुश रहता था और हर कार्य को प्रभु प्रियतम की इच्छा पर छोड़ देता था।
वह अपने लंबे अनुभव से जानता था कि अंत में होता वही है जो प्रभु की इच्छा हो । लेकिन जब पत्नी ने मजबूर किया तो एक जाने-माने पंडित के घर गया । आगे उसके दरवाज़े पर एक जवान लड़की देखी। पता चला कि वह पंडित की लड़की है और विवाह के थोड़े समय बाद ही विधवा हो गई है । वह सोचने लगा, सभी लोग पंडित से अपनी लड़कियों की शादी का मुहूर्त निकल पाते हैं पर यहां पंडित की अपनी लड़की विधवा हो चुकी है क्या उसने अपनी बेटी की शादी का मुहूर्त नहीं निकाला था ? उसने पंडित के पास जाने का विचार छोड़ दिया और गली में आगे चलता गया। आगे गया तो हकीम का मकान नजर आया। क्या देखते हैं कि उसके घर रोना पीटना हो रहा है।

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आनंद ने हकीम के नौकर से पूछा कि क्या कोई भयंकर हादसा हो गया है ? नौकर ने बताया कि हकीम का बेटा मर गया है। आनंद फिर सोचने लगा कि संसार की नित्य प्रतिक्रिया कैसी चल रही है। उसने अपने आप से कहा, "यहाँ इस घर में एक सयाना हकीम है जो अपने इकलौते बेटे को बचाने का भरपूर यत्न करता है पर उत्तम इलाज के उपलब्ध बावजूद उसका बेटा चल बसा है। यह हाकिम उसे क्यों नहीं बचा सका ?"लोग कहने लगे, "परमात्मा की मौज़ को कौन टाल सकता है।"
                  उसने धूल भरी गली में चलते-चलते मुस्कुराते हुए अपने मन में कहा :





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आज नकद कल उधार , यही कहता है संसार ।।
इसी का नाम है व्यापार,,

No ' Yes  Business

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